Natraj

 

Natraj



नमस्ते दोस्तों 

आज हम नटराज के स्वरुप का रहस्य जानने की कोशिश करने वाले है . नटराज भारतीय प्रसिद्ध मूर्ति कला प्रतिक है , आज जिसे भी नृत्य से प्यार है वो अपना नृत्य नटराज की मूर्ति को प्रणाम करके ही सुरु करता है. नटराज जिनको हम नृत्य का स्वामी भी कहते है . उनकी सम्पूर्ण आकृति ॐ के तरह दिखती है ये इस बात को दर्शाती है की ॐ शिव मै हीं नित है . वैसे ही शिव नटराज कला के आधार बताये गए है 

भगवन शिव के तांडव के दो स्वरुप है . प्राचीन आचार्य के मतानुसार शव के आनंद तांडव से पृथ्वी अस्तित्व मे अति है और उनके रूद्र तांडव मै श्रुष्टि का विलय हो जाता है 

 आज तक हमको उनके रौद्र तांडव का ही पता था की जो वो अपने क्रोध मै करते है 

लेकिन उनका दूसरा तांडव भी है आनंद प्रदान करने वाला आनंद तांडव जिसे हम नटराज कहते है 

उनकी मुद्रा कलाकृति को कई हिन्दू ग्रंथो मै वर्णित किया गया है .उनकी मूर्ति को साधारणता कस्य से बनाया जाती है लेकिन कई जगह पर उनकी मूर्ति पत्थर से बने देखि गयी है जैसे की एलोरो की गुफा मै जो महाराष्ट्र मे है .

नटराज को कोसमिक डांस भी कहा जाता कोसमिक यानी ब्रम्हांड की उर्जा जो की उनका नृत्य सर्जन उत्पत्ति विनाश क्या है वो दर्शाता है .

  जो की अगर नृत्य नहीं तो रचना नहीं 

  उससे पहले हम एक कहानी जानेगे जो की बोहत मजेदार है जो सबको जननी चाहिये |

एक बार भगवान् शिव और देवी कलि ने यह जानने का फैसला किया की उनमे से कौन नृत्य ओर अभिव्यक्ति मै सर्वाधिक श्रेष्ट है और उनके न्यायाधीश होंगे भगवन विष्णु और भगवान शिव का नृत्य बोहत ही सरल और प्राकृतिक था 

उनका नृत्य अभिव्यक्ति सबको मंत्र मुघ्द कर रही थी जो उनके न्रत्य को देख रहे थे 

वैसे ही देवी कलि ने भी उनकी हर मुद्रा और अभिव्यक्ति से सबको मंत्र मुघ्द कर दिया 

परंतु 

हम सब तो भगवन शिव ही लीलाए जानते है भगवन शिव भी लीलाए रचाते है 

  जानते है भगवन शिव ने क्या किया 

उन्होंने अपने पैर को कुमकुम मै डूबा के माँ कलि के माथे पे तिलक लगा दिया ,माँ कलि को समज आया वो भगवान शिव की लीला को समज गई , वो शिव की पत्नी थी वो ऐसा नहीं कर सकती थी . 

और तभी माँ कलि ने अपना नृत्य बंद कर दिया 

तभी 

भगवन विष्णु ने भगवान शिव को नटराज घोषित कर दिया |

और अब जानते है नटराज के मुद्रा के पीछे का रहस्य 

नटराज की यह मुद्रा अभय मुद्रा के नाम से जनि जाती है और शिव का दाहिना पैर अक्स्मात नामक राक्षस पर रखा है जो गलत ज्ञान का प्रतिक है जो शिव द्रारा नष्ट किया जाता है .शिव अज्ञान का विनाश करते है 

नटराज के चारो और अगनी का चक्र है जो उनके पैरो पर सुरु होता है और वही ख़त्म .

शिव के एक हाथ मै डमरू है. जो श्रजन Creation का प्रतिक है 

और उनके दुसरे हाथ मै अगनी है जो विनाश का प्रतिक है 

इसका यही मतलब है भगवान शिव एक हाथ से निर्माण करते है और एक हाथ से विनाश 

नटराज का दाया हाथ न्रत्य रूप मै ऊपर उठा हुवा है जससे उनका आशीर्वाद बुराईयों से हमारी रक्षा करता है 

नटराज का बाया हाथ उनके बाये पैर को संतुलित करता है , पैर उठाने के बाद शारीर का असमतोल होता है परंतु शिव समतोल है 

उठाया हुवा पैर मोक्ष को दर्शाता है और बाया हाथ उस मोक्ष के मार्ग पर चलने को सुजाव करता है 

  अब आप ठिकसे देखते है तो आप अब सोचते होगे की बाया पैर और हाथ दाहिनी और है तो दाहिनी और का क्या विशेष महत्व है 

       भारतीय पौराणिक ग्रंथो के नुसार शरीर का बाया हिस्सा भौतिक संचार से जुदा हुवा है कारन शरीर मै दिल बाए और होता है 

इस शरीर की दाहिनी बाजु अध्यात्मिक सत्य से जुडी हुई है बाया हिस्सा प्रकृति हमेशा परिवर्तन होने वाले निसर्ग का प्रतिक है 

दाहिना हिस्सा परुष है स्थिर और स्थित रहने की मानवी ताकत 

इसी लिए शिव पार्वती के हर चित्र मै शिव दाहिने और पार्वती बाई और होती है इस शरीर को इस प्रकृति को 

दोनों यानि स्त्री और पुरुष की जरुरत होती है 







Natraj



नमस्ते दोस्तों 
आज हम नटराज के स्वरुप का रहस्य जानने की कोशिश करने वाले है .  नटराज भारतीय प्रसिद्ध मूर्ति कला प्रतिक है , आज जिसे भी नृत्य से प्यार है वो अपना नृत्य नटराज की मूर्ति को प्रणाम करके ही सुरु करता है. नटराज जिनको हम नृत्य का स्वामी भी कहते है . उनकी सम्पूर्ण आकृति ॐ के तरह दिखती है ये इस बात को दर्शाती है की ॐ शिव मै हीं नित है . वैसे ही शिव नटराज कला के आधार बताये गए है 
भगवन शिव के तांडव के दो स्वरुप है . प्राचीन आचार्य के मतानुसार शव के आनंद तांडव से पृथ्वी अस्तित्व मे अति है और उनके रूद्र तांडव मै श्रुष्टि का विलय हो जाता है 
 आज तक हमको उनके रौद्र तांडव का ही पता था की जो वो अपने क्रोध मै करते है 
लेकिन उनका दूसरा तांडव भी है आनंद प्रदान करने वाला आनंद तांडव जिसे हम नटराज कहते है 
उनकी मुद्रा कलाकृति को कई हिन्दू ग्रंथो मै वर्णित किया गया है .उनकी मूर्ति को साधारणता कस्य से बनाया जाती है लेकिन कई जगह पर उनकी मूर्ति पत्थर से बने देखि गयी  है जैसे की एलोरो की गुफा मै  जो महाराष्ट्र मे है .
नटराज को कोसमिक डांस भी कहा जाता कोसमिक यानी ब्रम्हांड की उर्जा जो की  उनका नृत्य सर्जन उत्पत्ति विनाश क्या है वो दर्शाता है .
  जो की अगर नृत्य नहीं तो रचना नहीं 
  उससे पहले हम एक कहानी जानेगे जो की बोहत मजेदार है जो सबको जननी चाहिये |
एक बार भगवान् शिव और देवी कलि ने यह जानने का फैसला किया की उनमे से कौन नृत्य ओर अभिव्यक्ति मै सर्वाधिक श्रेष्ट है और उनके न्यायाधीश होंगे भगवन विष्णु और भगवान शिव का नृत्य बोहत ही सरल  और प्राकृतिक था 
उनका नृत्य अभिव्यक्ति  सबको मंत्र मुघ्द कर रही थी जो उनके न्रत्य को देख रहे थे 
वैसे ही देवी कलि ने भी उनकी हर मुद्रा और अभिव्यक्ति से सबको मंत्र मुघ्द कर दिया 
परंतु 
हम सब तो भगवन शिव ही लीलाए जानते है भगवन शिव भी लीलाए रचाते है 
  जानते है  भगवन शिव ने क्या किया 
उन्होंने अपने पैर को कुमकुम मै डूबा के माँ कलि के माथे पे तिलक  लगा दिया ,माँ कलि को समज  आया वो भगवान शिव की लीला को समज गई , वो शिव की पत्नी थी वो ऐसा नहीं कर सकती थी . 
और तभी  माँ कलि ने अपना नृत्य बंद कर दिया 
तभी 
भगवन विष्णु ने भगवान शिव को नटराज घोषित कर दिया |
और अब जानते है नटराज के मुद्रा के पीछे का रहस्य 
नटराज की यह मुद्रा अभय मुद्रा के नाम से जनि जाती है और शिव का दाहिना पैर अक्स्मात नामक राक्षस पर रखा है जो गलत ज्ञान का प्रतिक है जो शिव द्रारा नष्ट किया जाता है .शिव अज्ञान का विनाश करते है 
नटराज के चारो और अगनी का चक्र है जो उनके पैरो पर सुरु होता है और वही ख़त्म .
शिव के एक हाथ मै डमरू है. जो श्रजन Creation  का प्रतिक  है 
और उनके दुसरे हाथ मै अगनी है जो  विनाश का प्रतिक है 
इसका यही मतलब है भगवान शिव एक हाथ से निर्माण करते है और एक हाथ से विनाश 
नटराज का दाया हाथ न्रत्य रूप मै ऊपर उठा हुवा है जससे उनका आशीर्वाद बुराईयों  से हमारी रक्षा करता है 
नटराज का बाया हाथ उनके बाये पैर को संतुलित करता है , पैर उठाने के बाद शारीर का असमतोल होता है परंतु शिव समतोल है 
उठाया हुवा पैर मोक्ष को दर्शाता है और बाया हाथ उस मोक्ष के मार्ग पर चलने को सुजाव करता है 
  अब आप ठिकसे देखते है तो आप अब सोचते होगे की बाया पैर और हाथ दाहिनी और है तो दाहिनी और का क्या विशेष महत्व है 
       भारतीय पौराणिक ग्रंथो के नुसार शरीर का बाया हिस्सा भौतिक संचार से जुदा हुवा है कारन शरीर मै दिल बाए और होता है 
इस शरीर की दाहिनी बाजु अध्यात्मिक सत्य से जुडी हुई है बाया हिस्सा प्रकृति हमेशा परिवर्तन होने वाले निसर्ग का प्रतिक है 
दाहिना हिस्सा परुष है स्थिर और स्थित रहने की मानवी ताकत 
इसी लिए शिव पार्वती के हर चित्र मै शिव दाहिने और पार्वती बाई और होती है  इस शरीर को इस प्रकृति को 
दोनों यानि स्त्री और पुरुष की जरुरत होती है 











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